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अमेरिका-पाकिस्तान की ऑयल डील से भारत पर क्या होगा असर, क्या है तेल भंडार की सच्चाई?

Oil Reserves in Pakistan: अमेरिका और पाकिस्तान की तेल डील से साउथ एशिया में यूएस की बदलती रणनीति का पता चलता है। अमेरिका की प्राथमिकताएं बदल रही हैं।

भारत

Pawan Jayaswal

Aug 01, 2025

US Pakistan oil deal
पाकिस्तान और अमेरिका के बीच ऑयल डील हुई है। (PC: Gemini)

अमेरिका-पाकिस्तान के बीच हुए व्यापार समझौते ने दक्षिण एशिया की कूटनीतिक हलचलों को तेज कर दिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऐलान किया है कि अमेरिका पाकिस्तान के विशाल तेल भंडार को विकसित करने में मदद करेगा। इस घोषणा से कुछ ही घंटे पहले अमेरिका ने भारत पर 25% टैरिफ लगाया था, जिससे विशेषज्ञ इसे भारत-अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताओं में बदलाव के संकेत के रूप में देख रहे हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अपनी शर्तों पर भारत से ट्रेड डील करने की यह ट्रंप की दबाव की रणनीति है।

पाकिस्तान के लिए क्यों अहम है यह डील?

ट्रंप के मुताबिक, यह डील पाकिस्तान के लिए ऐतिहासिक अवसर है और इससे अमेरिकी कंपनियों को दक्षिण एशिया में ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच मिलेगी। हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान के किस क्षेत्र में यह तेल भंडार मौजूद हैं और उनमें से कितने वाणिज्यिक रूप से उपयोगी साबित होंगे।

तेल भंडार की सच्चाई क्या है?

तेल भंडारों को लेकर पाकिस्तान सरकार और मीडिया में बीते कुछ वर्षों से कई दावे किए गए हैं। विशेष रूप से सिंध और बलुचिस्तान के तटीय क्षेत्रों में यह बताया गया है। लेकिन अब तक कोई भी वाणिज्यिक खोज और पक्के प्रमाण सामने नहीं आए हैं। इसके अलावा इन क्षेत्रों में सुरक्षा और राजनीतिक अस्थिरता एक बड़ी चुनौती है।

अहम है डील

वर्तमान में भारत ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस, खाड़ी देशों और अमेरिका पर निर्भर है। विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान से संभावित तेल आपूर्ति न तो तात्कालिक है, न ही भरोसेमंद। यह प्रक्रिया तकनीकी दृष्टि से जटिल और आर्थिक रूप से भारी निवेश की मांग करती है। अगर तेल मिला भी, तो उसे निकालना शुरू करने में 5 से 7 साल लगेंगे।

क्या यह भारत के लिए चिंता का विषय है?

अमेरिकी नीति में पाकिस्तान को प्राथमिकता भारत के लिए चिंता का विषय है। डील से यह संकेत मिलता है कि अमेरिका दक्षिण एशिया में रणनीतिक संतुलन को नए सिरे से परिभाषित कर रहा है। डील भारत के लिए न तो सीधा खतरा है और न ही आर्थिक झटका। लेकिन यह जरूर संकेत है कि वैश्विक भू-राजनीति में अमेरिका की प्राथमिकताएं बदल रही हैं और भारत को अब ज्यादा सतर्क रहना होगा।