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Sholay: 70 के दशक में शोले की बसंती से लेकर सीता और गीता तक, हेमा मालिनी की फिल्मों ने रचा इतिहास

Sholay: 70 के दशक में हेमा मालिनी ने 'शोले' की बसंती से लेकर 'सीता और गीता' तक, कई यादगार किरदारों को निभाया और अपनी फिल्मों के जरिए इतिहास रचा...

Sholay: 70 के दशक में शोले की बसंती से लेकर सीता और गीता तक, हेमा मालिनी की फिल्मों ने रचा इतिहास
'शोले' की बसंती

Sholay: शोले में एक अभिनेत्री बसंती उर्फ हेमा मालिनी जहां वाचाल है, बहुत बोलती है वही राधा उर्फ जया भादूड़ी शांत रहती है। उनके संवाद बहुत कम है। उनके पति की मौत के बाद तो एक बार ही बोलती है जब वीरू और जय को वे ठाकुर की तिजोरी तोड़ने की कोशिश करते हुए देखती है।

तो कहती है 'ये लो तिजोरी की चाबी इसमें मेरे गहने हैं, जो अब मेरे (विधवा के) किसी काम के नहीं। कुछ रूपए है, सब ले जाओ अच्छा है, बाबूजी की झूठी उम्मीदे तो टूटेंगी' इसके अलावा वे अपनी खामोशी और आंखों से अभिनय करती हैं। चाहे लालटेन बुझाते समय माऊथ आर्गन बजाते हुए जय को देखना, या जय भैंस पर बैठकर आता है या होली गीत में दूर से देखना या जब पता चलता है गब्बर ने ठाकुर के हाथ काट दिए तब ठाकुर की शाल उडने पर उन्हें वापस ओढाती है या लास्ट में जय को मृत देखकर। हर दृश्य उन्होंने बखूबी निभाया। उनकी सिचुएशन ने भी साथ दिया, उस समय उनकी बेटी श्वेता पेट में थी, इसलिए ऐसा रोल निभाने में कोई दिक्कत नहीं हुई।

शादी से पहले ठाकुर और रामलाल

मगर इसी में उनका दूसरा रूप भी नजर आता है ,जब शादी से पहले ठाकुर और रामलाल उन्हें देखने जाते हैं, उस समय होली होती है। इस समय राधा बहुत बोलती है उसके मजाक मस्ती पे पिता इफ्तेखार, ठाकुर और रामलाल बहुत हंसते है। 'दो चुटकी वाली होली' हम भी बड़े बुजुर्गों की होली देखकर यही बोलते हैं।
इसमें उसका डायलॉग यादगार है। 'अब आप ही बोले ठाकुर साहब रंगों से किसी का कभी भला मन भरता है, सोचो ये रंग ना होते तो कितनी बेरंग हो जाती ये दुनिया।' 'सचमुच बेरंग हो गयी इसकी दुनिया।' फलेशबैक खत्म होता है और रामलाल जय से कहता है। उस समय रामलाल की नहीं थिएटर में बैठे दर्शक की आंख ही भीग जाती है और इसी दृश्य से दर्शक तैयार हो जाते है विधवा की जय से शादी करने को। उस दौर में एक्शन फिल्म में हीरोइन का काम नाचने गाने तक सीमित था।

सीता और गीता जैसी महिला प्रधान ब्लॉकबस्टर फिल्म

मगर हेमा के साथ सीता और गीता जैसी महिला प्रधान ब्लॉकबस्टर फिल्म बना चुके रमेश सिप्पी चाहते थे कि हेमा का रोल भी पुरुष पात्रों से कम ना हो। इसलिए इन्हें बसंती तांगेवाली का रोल दिया, जो एक बार बोलना शुरू करती है तो बिना बात बेफिजुल बोलती रहती है और कहती है,'देखो मुझे बेफिजुल बोलने की आदत तो है नहीं।' बोलने में इतनी खो जाती है कि क्या काम करने आई भूल जाती है। इनका तकिया कलाम है। डांस में यह प्रवीण है होली पर किसी की शादी में खूब नाचती है, इसीलिए गब्बर भी इनका नृत्य देखने के लिए उतावला हो जाता है। खूबसूरती तो बस मुहावरा ही बन गया। हम अक्सर सुनते थे 'बड़ी हेमा मालिनी बन रही है।'अब बसंती का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री की बात करें तो हेमा ने सपनो का सौदागर से शुरुआत की मगर जल्दी ही वर्ष 1970 से जॉनी मेरा नाम से नंबर वन की कुर्सी हथिया ली जो 83 तक श्रीदेवी आने तक कायम रही।

तुम हंसी मै जवां, शराफत भी हिट रही

वर्ष 1970 में ही तुम हंसी मै जवां, शराफत भी हिट रही। अगले साल 1971 में अंदाज और नया जमाना सुपरहिट रही। सन् 1972 में सीता और गीता से धमाका किया। इसी साल राजा जानी गोरा काला, भाई हो तो ऐसा सुपरहिट रही। अब जीतेन्द्र, फिरोज खान, रणधीर कपूर तो छोडो धर्मेंद्र, अमिताभ और राजेश खन्ना जैसे सुपरस्टार अपनी फिल्म में हेमा को चाहते थे। मनोज कुमार, शशि कपूर और देवानंद ने भी इनका हाथ पकड़ लिया। वर्ष 1975 में शोले के अलावा प्रतिज्ञा, संन्यासी, धर्मात्मा सुपरहिट रही वही दो ठग और खुशबू भी सफल रही।

70 के दशक में सभी स्टार की फिल्मों में से आधी सफल फिल्में

यही क्रम 1983 तक चला दस नंबरी, चरस, जानेमन, चाचा भतीजा, ड्रीम गर्ल, त्रिशूल, आजाद, अलीबाबा और चालीस चोर, क्रांति, नसीब, मेरी आवाज सुनो, फर्र्ज और कानून, सत्ते पे सत्ता, बगावत, अंधा कानून, जस्टिस चौधरी, कैदी आदि फिल्में सुपरहिट रही। यानी 70 के दशक में सभी स्टार की फिल्मों में से आधी सफल फिल्में हेमा जी के साथ थी। इनके गाने आते ही ब्लॉकबस्टर हो जाते थे। इनकी सुंदरता में हर निर्माता अपनी और से नए प्रयोग करता। इनके जुगनू के हेट हो या धर्मात्मा के स्कार्फ और हेडबैंड या चरस के जैकेट या त्रिशूल के बेल बॉटम या रजिया सुल्तान की अरेबीक पोशाक, राजपूत की राजस्थानी पोशाक सभी में गजब ढाती है। शोले में उनकी ड्रेस फिल्मी गांव की थी जिसमें वो बालों में गजरा भी लगाती है। 70 का दशक नहीं अगर हेमा नहीं और शोले नहीं, अगर बसंती नहीं। -इंजीनियर रवीन्द्र जोधावत