Karan Dewan: हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का ब्लैक एंड व्हाइट एरा या गोल्डन दौर, वो दौर था जब फिल्में, कलाकार, कहानियां, गीत-संगीत सब कुछ बहुत ज़मीनी हुआ करता था। उस दौर में ना कोई हाईटेक एडिटिंग होती थी और ना ही कोई चमक-दमक होती थी। वो वक़्त ऐसा था जब लोग फिल्में सिर्फ पैसा कमाने के लिए नहीं बल्कि समाज को जागरूक करने के लिए भी बनाते थे। नए-नए कलाकारों को अपने अभिनय का प्रदर्शन करने का मिलता था। उस दौर में ऐसे ही एक अभिनेता थे जिनका नाम था करण दीवान।
आपमें से बहुत से लोगों ने इस अभिनेता का नाम नहीं सुना होगा। आज हम आपको इसी दिग्गज कलाकार से रू-ब-रू कराने जा रहे हैं।
करण दीवान का जन्म 6 नवम्बर 1917 में गुजरनवाला (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। उनका असली नाम दीवान करण चोपड़ा था। उन्होंने लाहौर से अपनी पढ़ाई पूरी की और पढ़ाई के बाद वो उर्दू की एक फिल्मी मैगजीन में बतौर एडिटर काम करने लगे। वैसे तो वो पत्रकर लेकिन फिल्मी खबरों के चलते उनकी मुलाकात फिल्मी हस्तियों से होती रहती थी। उसी दौरान उनकी मुलाकात जाने-माने फिल्म डायरेक्टर-प्रोड्यूसर सूरज बड़जात्या के दादा ताराचंद बड़जात्या जी से हुई थी। आपको बता दें कि राजश्री प्रोडक्शन की शुरुवात ताराचंद जी ने ही की थी। हालंकि, उस वक़्त ताराचंद बड़जात्या एक लोकल डिट्रिब्यूटर थे और लाहौर में ही काम करते थे। ताराचंद जी से घनिष्ठतता बढ़ने पर करण दीवान जी ने उनके सामने फिल्मों में काम करने की अपनी दिली ख्वाहिश को जाहिर किया। ताराचंद जी ने उनके हुनर को देखते हुए उनको एक पंजाबी फिल्म में काम दिलवाया। ताराचंद जी के कहने पर करण दीवान कोलकाता पहुंच गए और 1939 में रिलीज हुई पंजाबी फिल्म ‘पूरण भगत’ से अपने अभिनय सफर की शुरुआत की।
अभिनय में आने से पहले पेशे से पत्रकार रहे करण दीवान ने 1939 से लेकर 1979 तक यानी अपने 40 साल के फिल्मी करियर में 70 से ज्यादा फिल्मों में काम किया था।
करण दीवान, उस दौर के जाने माने फिल्म डायरेक्टर जैमिनी दीवान के भाई थे और उन्होंने अभिनय जगत में पंजाबी फिल्म से कदम रखा था, लेकिन उनको पहचान 1944 में आई फिल्म ‘रतन’ से मिली जो उस दौर की सबसे बड़ी हिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में करण ने मुख्य भूमिका निभाई थी और इनकी साथ हीरोइन के रूप में स्वर्णलता नजर आई थीं। ये फिल्म उस साल की सब बड़ी हिट फिल्म बनी थी। करण दीवान ने इस फिल्म में फेमस संगीत निर्देशक नाशाद के साथ एक गाना भी गया था, जिसका शीर्षक ‘जब तुम ही चले परदेस’ था। फिल्म का ये गाना भी सुपर डुपर हिट साबित हुआ। ये कहना गलत नहीं होगा कि रतन फिल्म करण दीवान के फ़िल्मी सफर में मील का पत्थर साबित हुई थी। उस दौर में ये फिल्म लगातार 50 दिन थियेटर्स में लगी रही थी और इसने डायमंड जुबली मनाई थी।
रतन के बाद करण की ज्यादातर फिल्मों ने सिल्वर जुबली मनाई। उन्होंने एक से बढ़कर एक हिट फिल्में दीं थी। इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि जुबली कुमार उर्फ़ राजेंद्र कुमार से पहले ही करण ने 'सिल्वर जुबली स्टार' का ख़िताब हासिल कर लिया था। बेहद उम्दा एक्टर करण ने सुरैया, सुलोचना चटर्जी, स्वर्णलता, वैजयंतीमाला, और नलिनी जयवंत जैसी मशहूर अभिनेत्रियों के साथ काम किया। कहते हैं कि उस वक़्त करण दीवान की 20 से ज्यादा फिल्मों ने सिल्वर जुबली मनाई थी।
करण की सफलता का आलम ये था कि 1950 के दशक में वो एक साथ कई फिल्मों में काम कर रहे थे। मगर वो कहते हैं न कि समय एक सा नहीं रहता। इसी के चलते 60 से 70 के दशक में दीवान साहब ने फिल्मों में सह-अभिनेता के रूप में भी काम किया और 1976 में फिल्मों को अलविदा कह दिया।
फिल्म रतन की शूटिंग के दौरान करण की मुलाकात मराठी एक्टर-सिंगर मंजू से हुई और दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया। फिर दोनों शादी कर ली। हालांकि शादी के बाद पत्नी मंजू ने एक्टिंग करियर को टाटा कर दिया। साल 1979 को फिल्मी जगत के इस सितारे ने दुनिया को अलविदा कर दिया।
Published on:
02 Aug 2025 08:22 am