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दीयों की लौ, शिवलिंग का ध्यान और 86 वर्षों की भक्ति…. इस मंदिर में हर पत्थर बोलता है आस्था की भाषा, जानें

CG Temple: छत्तीसगढ़ की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत में अनेक मंदिरों का योगदान रहा है, जिन्होंने न केवल श्रद्धालुओं की आस्था को मजबूत किया, बल्कि सामाजिक एकता और परंपराओं को भी जीवित रखा है।

बिलासपुर का ऐतिहासिक बघवा मंदिर (फोटो सोर्स- पत्रिका)
बिलासपुर का ऐतिहासिक बघवा मंदिर (फोटो सोर्स- पत्रिका)

CG Temple: छत्तीसगढ़ की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत में अनेक मंदिरों का योगदान रहा है, जिन्होंने न केवल श्रद्धालुओं की आस्था को मजबूत किया, बल्कि सामाजिक एकता और परंपराओं को भी जीवित रखा है। ऐसा ही एक पवित्र स्थल है 'बघवा मंदिर', जो बिलासपुर शहर के सरकंडा क्षेत्र में स्थित है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी यह शहर के सबसे पुराने मंदिरों में गिना जाता है। मंदिर का इतिहास उतना ही रोचक है जितना इसका धार्मिक महत्व।

स्थापना और इतिहास

बघवा मंदिर की नींव*सन् 1939 में उदल सिंह ठाकुर और अधारी सिंह ठाकुर द्वारा रखी गई थी। उस समय यह क्षेत्र अपेक्षाकृत कम विकसित था, लेकिन मंदिर के निर्माण ने यहां की धार्मिक चेतना को नई दिशा दी। 86 वर्षों का यह सफर न केवल समय की कसौटी पर खरा उतरा है, बल्कि लोगों की आस्था भी समय के साथ और प्रगाढ़ होती चली गई।

मंदिर के पुराने पत्थरों और वास्तु में आज भी उस समय की छाप

कृष्णा तिवारी बताते हैं कि इस स्थान पर कभी खेती होती थी, और उस समय इस क्षेत्र की पहचान खेतिहर इलाकों के रूप में होती थी। उदल सिंह ठाकुर और अधारी सिंह ठाकुर एक धार्मिक और परोपकारी व्यक्ति थे, उन्होंने इस भूमि को धर्मस्थली में बदलने का संकल्प लिया और सन् 1939 में बघवा मंदिर की स्थापना की। उस समय मंदिर की संरचना बहुत साधारण थी, लेकिन लोगों की आस्था और वर्षों की सेवा ने इसे एक भव्य रूप प्रदान किया। मंदिर के पुराने पत्थरों और वास्तु में आज भी उस समय की छाप देखी जा सकती है।

धार्मिक महत्व

बघवा मंदिर एक ऐसा स्थल है जहाँ श्रद्धा और विश्वास का संगम देखने को मिलता है। यहाँ रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और विशेष अवसरों जैसे- नवरात्रि, महाशिवरात्रि, रामनवमी आदि पर यहाँ विशेष आयोजन होते हैं। स्थानीय लोग मानते हैं कि इस मंदिर में मांगी गई मुरादें अवश्य पूरी होती हैं, इसलिए यह न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि आस्था की जीवंत प्रतीक भी है।

सांस्कृतिक केंद्र के रूप में मंदिर

बघवा मंदिर केवल पूजा-अर्चना का स्थान नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र रहा है। समय-समय पर यहाँ भजन संध्याएँ, कथा वाचन, और सामूहिक यज्ञ जैसे कार्यक्रमों का आयोजन होता रहा है। मंदिर में हर सप्ताह सत्संग, हनुमान चालीसा पाठ, और कीर्तन का आयोजन होता है जिसमें युवा वर्ग भी बढ़-चढ़कर भाग लेता है। इससे यह मंदिर एक जीवंत सामाजिक संस्था के रूप में भी विकसित हुआ है, जो नई पीढ़ी को भी अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य कर रहा है।

दीयों की लौ के साथ शिवलिंग के सामने ध्यान लगाते हैं श्रद्धालु

बघवा मंदिर में सुबह से लेकर शाम तक लोगों का आना-जाना लगा रहता है। बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और युवा - सभी आयु वर्ग के लोग इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। शिवलिंग के सामने बैठकर ध्यान लगाना, दीयों की लौ के साथ प्रार्थना करना और मंदिर प्रांगण में शांति से कुछ समय बिताना, भक्तों की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है।

सावन में उमड़ता है श्रद्धा का सैलाब

सावन मास का आगमन होते ही बघवा मंदिर की रौनक देखते ही बनती है। प्रत्येक सोमवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ मंदिर में भगवान शिव के दर्शन और पूजा के लिए उमड़ती है। जलाभिषेक, रुद्राभिषेक, और शिवलिंगा पर बेलपत्र, दूध व जल अर्पित करने के लिए श्रद्धालु सुबह से ही कतारों में लगा जाते हैं। मंदिर समिति के अध्यक्ष कृष्णा तिवारी बताते हैं कि सावन के महीने में यहां विशेष पूजन, आरती और भंडारा का आयोजन होता है, जिसमें शहर के कोने-कोने से लोग सम्मिलित होते हैं।