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अनोखी देशभक्ति: 23 वर्षों से एक परिवार अपने घर में हर दिन फहरा रहा तिरंगा, गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज नाम

Bilaspur News: ज्यादातर लोग सिर्फ 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही राष्ट्र ध्वज फहराते हैं। लेकिन बिलासपुर के श्रीवास्तव परिवार ने 23 वर्षों से हर दिन अपने घर की छत पर तिरंगा फहराकर अनोखी देशभक्ति की मिसाल कायम की है।

अनोखी देशभक्ति (फोटो सोर्स- पत्रिका)
अनोखी देशभक्ति (फोटो सोर्स- पत्रिका)

CG News: ज्यादातर लोग सिर्फ 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही राष्ट्र ध्वज फहराते हैं। लेकिन बिलासपुर के श्रीवास्तव परिवार ने 23 वर्षों से हर दिन अपने घर की छत पर तिरंगा फहराकर अनोखी देशभक्ति की मिसाल कायम की है। इस शिक्षक दपती का देश भक्ति के प्रति जुनून गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।

नेहरू नगर में आईटीआई के रिटायर्ड प्रोफेसर केके श्रीवास्तव ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार ने वर्ष 2002 के बाद से घर या ऑफिस में नियमपूर्वक तिरंगा फहराने की अनुमति दी, तभी से आज तक यह काम जारी है। ठंड, बारिश हो या गर्मी, अगर कोई मेहमान भी आता है तब भी रोजाना छत पर ध्वजारोहण होता है। देशभक्ति के इस नेक कार्य में उनकी पत्नी नीरजा श्रीवास्तव जो प्रिंसिपल हैं, वे भी पूरा साथ देती हैं।

नीरजा बताती हैं कि अगर किसी जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा तो परिवार का कोई एक सदस्य जरूर तिरंगा चढ़ाने, उतारने और फहराने के लिए घर पर मौजूद रहता है। उनके पड़ोस में रहने वाले भी उनका सहयोग करते हैं । ऐसा कोई दिन नहीं होगा जब प्रोफेसर दंपती ने अपने घर पर ध्वजारोहण न किया हो।

बचपन की घटना से आजीवन संकल्प

पूछने पर केके श्रीवास्तव बताते हैं कि बचपन में 15 अगस्त के दौरान उन्हें उनके स्कूल के किसी शिक्षक ने झंडे की छांव के नीचे खड़ा होने पर मना किया था। नहीं मानने पर उन्हें धक्का देकर हटाया गया। यही बात उनके जेहन में घर कर गई। तब वे छोटे थे, पर तभी से उन्होंने ठान लिया था कि एक न एक दिन वे भी तिरंगा फहराएंगे। वे इससे पहले नौकरी के दौरान अपने शासकीय कार्यालय में तिरंगा फहराते थे। इस दौरान लैग कोड का पूरा ध्यान रखा जाता है।

बच्चे भी निभा रहे परंपरा

परिवार में दो बेटियां और एक बेटा है। बड़ी बेटी मुंबई में डॉक्टर, छोटी बेटी दिल्ली में एचआर मैनेजर हैं। बेटा बैंगलुरु में यूपीएससी की तैयारी कर रहा है। त्योहार या अवकाश पर सभी घर आते हैं और ध्वजारोहण में शामिल होते हैं। बच्चों को भी यह परंपरा गर्व और खुशी देती है।