अंग्रेजी माध्यम के सरकारी स्कूलों को जब शुरू किया गया था तब लगा था कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे भी निजी विद्यालयों के बालकों से मुकाबला कर पाएंगे। लेकिन नई सरकार आने के बाद इन स्कूलों को लेकर बना असमंजस कायम है। इसी का नतीजा है कि अंग्रेजी माध्यम के महात्मा गांधी स्कूलों के लिए विभागीय परीक्षा के माध्यम से चयनित तीस हजार से ज्यादा शिक्षक तय स्थान पर पदस्थापित होने का इंतजार कर रहे हैं। इन शिक्षकों को तैनात किए बिना ही लगभग एक पूरा शिक्षा सत्र बीत गया है। हैरत की बात यह है कि शिक्षा विभाग खुद इन शिक्षकों से जिलों में पदस्थापन के विकल्प भी मांग चुका है। जिन शिक्षकों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के लिए चुना गया था वे खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। चूंकि नया सत्र जुलाई में ही शुरू होने वाला है। ऐसे में ये अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में समय से पहुंच पाएंगे, इसकी उमीद कम ही लगती है। पदस्थापन में यह देरी न केवल विभाग की चुप्पी पर सवाल खड़े कर रही है बल्कि चयनित शिक्षकों के धैर्य की परीक्षा भी ले रही है।
चयनित शिक्षक अब आशंकित हैं कि कहीं सरकार एक बार फिर पूरी चयन प्रक्रिया को रद्द कर नई परीक्षा आयोजित न कर दे। ऐसा इसलिए भी क्योंकि सरकार का रुख अंग्र्रेजी माध्यम के इन स्कूलोें के प्रति क्या रहने वाला है, यह अभी पूरी तरह साफ नहीं हो पाया है। शिक्षा में नवाचार के प्रयास इस तरह अधर में रहने लगें तो बच्चों के भविष्य पर भी सवालिया निशान लगना स्वाभाविक है। यह भी समझना होगा कि सरकार जब अपने स्तर पर कोई चयन प्रक्रिया करती है तो वह महज एक प्रशासनिक प्रक्रिया ही नहीं होती। शिक्षकों के पदस्थापन में देरी से बच्चों की पढ़ाई-लिखाई बाधित होना स्वाभाविक है। शिक्षा जैसी संवेदनशील और आधारभूत व्यवस्था में ऐसी ढिलाई अनुचित है। सरकार को तत्काल स्पष्ट कार्ययोजना घोषित करने के साथ शिक्षकाें की तैनाती सुनिश्चित करनी चाहिए।
Published on:
12 Jun 2025 12:27 am