राजस्थान स्टोन क्रशर एसोसिएशन एवं चुनाई पत्थर एसोसिएशन की हड़ताल के चलते रविवार को भीलवाड़ा जिले के समोड़ी, दरीबा, कारोई, बड़ा महुआ सहित अन्य क्षेत्रों की चुनाई पत्थर खदाने एवं स्टोन क्रशर पूरी तरह बंद रहे। वहीं बिजौलियां क्षेत्र में भी सेंड स्टोन से जुड़े सभी कार्य ठप हो गए।
हड़ताल के चलते खनन क्षेत्र में सन्नाटा पसरा रहा। ट्रक, ट्रेलर और ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के पहिए थमे रहे और मजदूर भी कार्यस्थलों पर आराम करते नजर आए। हड़ताल का पहला दिन होने से जिले में व्यापक असर नहीं पड़ा, लेकिन मंगलवार से सरकारी कामकाज प्रभावित होने की पूरी आशंका है।
भीलवाड़ा क्रशर एवं चेजा पत्थर खनन संघ अध्यक्ष अनिल सोनी ने बताया कि खनन पट्टाधारियों की लंबित मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है। लीज धारक व खनन पट्टाधारक के सामने कई समस्या है।
सोनी ने बताया कि खनन पट्टाधारियों एवं खनिज संगठनों ने सरकार से लंबित मांगों को लेकर यह हड़ताल शुरू की है। संगठनों की ओर से बार-बार ज्ञापन और वार्ताएं होने के बावजूद समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, जिससे यह कदम उठाना पड़ा।
यह है प्रमुख मांगें
डीएमएफटी फंड केवल खनन प्रभावित क्षेत्रों में ही खर्च किया जाए। पांच हेक्टेयर तक के खनन पट्टों को एनवायरनमेंट क्लियरेंस से मुक्त किया जाए। प्लांटेशन की जिम्मेदारी पट्टाधारियों की स्वेच्छा पर छोड़ी जाए। श्रम विभाग की रिटर्न्स से छोटे पट्टों को मुक्त किया जाए। डेड रेंट कम किया जाए और सभी पट्टों पर समान दर लागू हो। रॉयल्टी दरों में कमी की जाए। खनन क्षेत्र की आवश्यकता वाली भूमि को 15 दिनों में विभाग मुहैया कराए। अवैध खनन के आरोप खनन क्षेत्र के बाहर पट्टाधारी पर न लगाए जाएं। खनन पट्टों में आने वाले खसरों को अमलदरामद किया जाए। अन्य उपयोग के लिए आवंटित खसरों को रद्द कर खनन क्षेत्र में शामिल किया जाए। अवैध कब्जों को हटाने के लिए निर्देश जारी कर कार्रवाई की जाए। रॉयल्टी ठेके समाप्त किए जाएं, जिससे राजस्व को हानि ना हो। लैंड टैक्स समाप्त किया जाए। डेड रेंट की दर कम कर एकरूपता लाई जाए। ऑनलाइन आवेदन के बाद ऑफलाइन दस्तावेजों की मांग बंद की जाए। सिटिजन कॉल सेंटर स्थापित किया जाए। ऑनलाइन पोर्टल की मॉनिटरिंग समयबद्ध की जाए। वन विभाग की ओर से जोड़े गए नए खसरे पुराने पट्टों के निकट नहीं जोड़े जाएं। आदि मांगे शामिल है।
प्रभाव की शुरुआत, आगे गहराएगा संकट
खनिज संगठनों का दावा है कि यदि उनकी मांगों को शीघ्र नहीं माना गया तो यह आंदोलन और तेज होगा। इससे न केवल स्थानीय रोजगार बल्कि प्रदेश के राजस्व पर भी गहरा असर पड़ेगा। संगठनों ने चेताया कि अब केवल वार्ता नहीं, ठोस निर्णय चाहिए।
Published on:
04 Aug 2025 08:57 am