
CG News: नशामुक्ति केंद्रों में अब तक शराब या ड्रग एडिक्ट मरीज ही भर्ती होने पहुंचते थे, लेकिन सोशल मीडिया का फीवर बच्चों में इस कदर बढ़ गया है कि अभिभावक उन्हें भी केंद्र में भर्ती कराने लाने लगे हैं। ऑनलाइन गेस, रील्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यू-ट्यूब समेत अन्य एप्लिकेशन का यूज इतना बढ़ गया है कि इसकी गिरफ्त में सबसे ज्यादा पांच साल के बच्चे से बीस साल के टीनएजर्स आ गए हैं। इसके कारण उनकी मनोदशा बिगड़ने लगी है। बच्चों के स्वभाव में चिड़चिड़ापन और हिंसात्मक प्रवृत्ति बढ़ गई है। इससे परेशान पैरेंट्स अपने बच्चों को नशामुक्ति केंद्रों में लाने लगे हैं।
मनोचिकित्सक डॉ. मोनिका साहू ने बताया कि मोबाइल एडिक्शन का सबसे ज्यादा असर मेंटल हेल्थ पर हो रहा है। इससे बच्चे और वयस्कों में डिप्रेशन, चक्कर आना, चिड़चिड़ापन और अकेले रहने की इच्छा शुरू हो जाती है। जब कोई इनसे मोबाइल छीन लेता है, नेटवर्क चला जाता है और रिचार्ज खत्म हो जाता है तो गुस्सा बढ़ जाता है। कभी-कभार हिंसात्मक प्रवृत्तियां बढ़ती हैं। ज्यादा सती दिखाने पर बच्चे या वयस्क आत्मघाती कदम उठा सकते हैं। अकेले रहने की इच्छा, सामाजिक मेलजोल कम करना, पढ़ाई या दूसरे काम में मन न लगना, बेचैनी, नींद न आना भी मोबाइल एडिक्शन के घातक परिणाम हैं।
अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों को शुरुआती स्टेज में मोबाइल न दें। उन्हें ज्यादा से ज्यादा फिजिकली एक्टिव रहने के लिए प्रोत्साहित करें और खुद भी घर में बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं। बड़ों को देखकर बच्चे भी अपनी आदतें सुधार लेंगे।
-विजय अग्रवाल,एसएसपी दुर्ग
नशामुक्ति केंद्र में आ रहे मोबाइल एडिक्शन के मामलों में सबसे ज्यादा केस ऑनलाइन गेमिंग के हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक 40 प्रतिशत बच्चे व वयस्क दिन में अधिकांश समय इसी में गुजारते हैं। शॉर्ट फॉर्म वीडियो प्लेटफॉर्म-35 प्रतिशत, सोशल मीडिया एडिक्शन- 15 प्रतिशत, जुआ और अश्लील कंटेंट वाली फिल्में या फोटो देखने वालों की संया 10 प्रतिशत है।
डॉ. मोनिका बताती हैं कि ऐसे मरीजों में नींद न आना, चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन, आंखों में जलन, सिरदर्द जैसी समस्याएं आम हैं। कई बार बच्चे अकेले रहने लगते हैं और परिवार से संवाद टूटने लगता है। माता-पिता को बच्चों के स्क्रीन टाइम पर निगरानी रखनी चाहिए और जरूरत पड़ने पर मनोचिकित्सक से सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
Published on:
03 Nov 2025 10:07 am
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