बालोतरा। पश्चिमी राजस्थान में पानी की अहमियत किसी से छिपी नहीं है। भीषण गर्मी और अकाल की मार झेलने वाले इस क्षेत्र में वर्षों से कई योजनाएं बनी और फाइलों में दफन हो गई। सिवाना क्षेत्र स्थित बालोतरा व बाड़मेर दोनों जिलों का एकमात्र मेली बांध भी ऐसी ही कागजी योजनाओं में सिमटकर रह गया है। कभी आसपास के दर्जनों गांवों की प्यास बुझाने और खेती के लिए वरदान साबित होने वाला यह बांध पिछले 18 साल से बदहाली के दौर से गुजर रहा है। सिवाना के छप्पन की पहाड़ियों की तलहटी में बना यह बांध अपनी जर्जर हालत की गवाही खुद दे रहा है।
100 साल पुराना इतिहास, 18 फीट भराव क्षमता
करीब 100 वर्ष पूर्व जोधपुर रियासत की ओर से निर्मित इस बांध की भराव क्षमता 18 फीट है। लेकिन कैचमेंट क्षेत्र में अतिक्रमण और जलभरण अव्यवस्था के चलते इसमें कभी-कभार ही पानी भर पाता है। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार 1974 तक इस बांध की वजह से यहां का जलस्तर काफी ऊंचा था और यह खेती व पेयजल का मुख्य स्रोत था। लेकिन 1974 की अतिवृष्टि में बांध टूट गया और बाद में सरकार ने इसकी मरम्मत भी करवाई। साल 2007 में सरकार ने इसके जीर्णोद्धार और जलभरण के लिए करीब 1 करोड़ रुपये की योजना स्वीकृत की, लेकिन महज 25 लाख रुपये का ही कार्य होने से शेष राशि समयावधि पूरी होने पर लेप्स हो गई। ऐसे में अब पिछले 18 वर्षों से सरकारी अनदेखी के कारण यह केवल नाम का बांध रह गया है।
अवैध खनन और अधूरी नहर ने बिगाड़ी स्थिति
इसके बाद एक जापानी कम्पनी ने जीर्णोद्वार का बीड़ा उठाया और बांध को भरने के लिए करीब 16 किलोमीटर दूर पिपलून गांव से नहर का प्रोजेक्ट बनाया। लेकिन यह कार्य भी अधूरा रह गया और समय के साथ नहर क्षतिग्रस्त हो गई। वहीं बांध के पेटे से मिट्टी के अवैध खनन और ट्यूबवेल लगाने से पानी का ठहराव संभव नहीं हो पा रहा है।
4 किलोमीटर लंबा जर्जर मार्ग
सिवाना के मेली गांव से मेली बांध तक जाने वाला मुख्य मार्ग लंबे समय से खस्ताहाल है। करीब 4 किलोमीटर लंबे इस सड़क मार्ग पर जगह-जगह नुकीले पत्थर निकल आए हैं और सड़क की पट्टियां टूटकर बिखर गई हैं। वाहन चालकों और पैदल राहगीरों के लिए यहां से गुजरना मुश्किल हो गया है, लेकिन संबंधित विभाग ने अब तक कोई ध्यान नहीं दिया।
ग्रामीणों की पीड़ा
ग्रामीणों को मेली बांध का कोई लाभ नहीं मिल रहा है। पानी बीच रास्तों में रुक जाता है, भराव नहीं हो पाता। पिछले लंबे समय से मेली गांव से मेली बांध जाने वाला मार्ग भी टूटा हुआ है। अंधेरे में लोग ठोकर खाकर गिर रहे हैं, लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा।
मेली और आसपास के गांवों को वर्षों से खारा पानी मिल रहा है, जो पीने योग्य भी नहीं। मजबूरी में महंगे दामों पर पानी खरीदना पड़ता है। वहीं सड़क की हालत बेहद खराब होने से ग्रामीण गिरकर चोटिल हो रहे हैं, लेकिन मरम्मत के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया।
Published on:
11 Aug 2025 09:26 pm