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कॉलेज के समय देखी थी ‘तिरंगा’, वक्त मिलता है तो आज भी खेलता हूं बैडमिंटन : सांसद उम्मेदाराम

बाड़मेर-जैसलमेर सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल से खास बातचीत... कभी संसद मार्ग थाने में ड्यूटी की, आज उसी रास्ते से चढ़ते हैं संसद की सीढि़यां

बाड़मेर-जैसलमेर से कांग्रेस सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल।

योगेंद्र सेन
बाड़मेर. एक शख्स दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल रहा। दस साल तक खाकी वर्दी पहन ड्यूटी करता रहा। राजधानी में आम आदमी से लेकर खास लोगों की सुरक्षा का जिम्मा संभाला। दो दशक बाद आज वही पुलिस का जवान देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में जनता का नुमाइंदा बनकर उनकी आवाज उठाता है। यह कहानी कुछ-कुछ फिल्मी जरूर लगती है, लेकिन है हकीकत। ग्रामीण परिवेश और सामान्य परिवार से आने वाले युवक के लिए सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति के मैदान में उतरना असान नहीं रहा। दो विधानसभा चुनाव में लगातार हार के बाद लोकसभा चुनाव में आखिर जीत हासिल ली। बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से चुने गए कांग्रेस सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल से हमारी बातचीत न सिर्फ सियासी पगडंडियों पर घूमी, बल्कि उनके जीवन के उन मोड़ों पर भी रुकी, जहां आम आदमी खास बनने की राह चुनता है। पेश है राजस्थान पत्रिका से खास मुलाकात के दौरान कुछ चुनिंदा सवाल-जवाब…

सवाल: आप देश की राजधानी दिल्ली में पुलिस कांस्टेबल थे। सरकारी नौकरी छोड़ सियासत के मैदान में कैसे उतर गए ?
जवाब : दरअसल मैं ठहरा मारवाड़ की ग्रामीण पृष्ठभूमि का आदमी। दिल्ली जैसे शहर में मुझे ये नौकरी रास नहीं आई। 2010 में अपने गांव पुनियों का तला में पत्नी पुष्पा देवी सरपंच चुनी गई। बस उसके बाद लोगों का प्यार मिलता गया। और वहीं से ये सियासी सफर शुरू हुआ।

सवाल: एक ग्रामीण परिवेश के युवक के लिए सरकारी नौकरी छोडऩे का फैसला आसान नहीं होता। क्या परिवार-रिश्तेदार, दोस्तों ने टोका नहीं?
जवाब : मैं 1995 में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के रूप में चयनित हुआ। 2005 तक विभिन्न थानों में सेवाएं दीं, जिसमें संसद मार्ग थाना भी शामिल था। लेकिन मन नहीं लगा और नौकरी की जगह खुद का काम करने की सोची। खुद का हैंडलूम बिजनेस शुरू करने का निर्णय लिया। इसमें परिवार का भी साथ मिला। और उन्हीं के सहयोग से काम आगे बढ़ा।

सवाल : लगातार दो विधानसभा चुनाव में शिकस्त के बाद आपको नहीं लगा कि अब राजनीति में कॅरियर खत्म है?
जवाब : नहीं, ऐसा नहीं था। मैं चुनाव भले नहीं जीत पाया लेकिन लोग मेरे साथ थे। 2018 में 12 हजार और 2023 मात्र 910 वोट से हारा।

सवाल: आप अब सांसद हैं। कोई एक ऐसा काम जो समाज में बदलाव के लिए करना चाहते हैं?
जवाब : मेरी प्राथमिकता शिक्षा है। जीवन में बदलाव के लिए बेसिक एजुकेशन बहुत जरूरी है। मैं चाहता हूं गांवों में ऐसा स्कूल हो, जिसमें डिजिटल क्लास, स्मार्ट लैब, खेल मैदान, लाइब्रेरी सब हो। ताकि गांव का बच्चा किसी मेट्रो सिटी के बच्चे से पीछे न रहे।

सवाल: लेकिन बेसिक एजुकेशन मिलेगी कैसे, जबकि हमारे सरकारी स्कूलों की तो हालत ही खराब है?
जवाब : देखिए इसके लिए जागरूकता जरूरी है। मैंने यूरोप के देशों की यात्रा के दौरान देखा कि वहां के लोगों और सरकार का ध्यान बेसिक एजुकेशन पर है। और उसी से उनकी समझ शिक्षा से ही मजबूत हुई है।

सवाल: आजकल मोबाइल ही स्क्रीन बन गया है। क्या आप भी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर मूवी, वेब सीरिज देखते हैं?
जवाब : अरे नहीं-नहीं। मुझे फिल्मों का शौक नहीं है। हंसते हुए बोले- कॉलेज के दिनों में सिनेमा हॉल में दोस्तों के साथ 'तिरंगा' फिल्म देखी थी। वहीं पहली और आखिरी फिल्म देखी है।

सवाल: सियासी व्यस्तताओं के बीच क्या बच्चे जिद नहीं करते कि हमारे साथ वक्त बिताएं। परिवार को कैसे समय देते हैं?
जवाब : कोशिश करता हूं कुछ समय दूं। लेकिन उतना नहीं दे पाता। हम तो ग्रामीण परिवेश के लोग हैं। बच्चे और परिवार समझते हैं। इसको लेकर पत्नी ने कभी शिकायत नहीं की। बल्की परिवार का साथ हमेशा रहता है।

सवाल: आपका पसंदीदा खेल कौनसा है, क्या अब भी आप खेलते हैं?
जवाब: कॉलेज के समय में बैडमिंटन खेला करता था। आज भी कभी मौका मिले तो रैकेट उठा लेता हूं। (हंसते हएु) इसी बहाने अपनी सेहत का भी पता चल जाता है।