गुरुवार को जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण अंचल में हलषष्ठी (कमरछठ) का पर्व मनाया जाएगा। महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु की कामना करते हुए व्रत रखेंगी। पर्व को लेकर महिलाओं में उत्साह देखा जा रहा है। एक दिन पहले महिलाओं ने हाथों में मेहंदी रचाई। पर्व के लिए महिलाओं में उत्साह भी दिखाई दे रहा है।
व्रती महिलाएं पसहर चावल का उपयोग खाने में करती हैं। यह वह चावल है, जो बिना हल से जुताई किए उत्पादन किया जाता है। इस चावल का बड़ा महत्व रहता है। इस बार यह चावल 120 रुपए किलो बिका।
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पर्व भाद्र माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। संतान प्राप्ति व उनके दीर्घायु, सुखमय जीवन की कामना के लिए माताएं व्रत को रखती हैं। माताएं सुबह से ही महुआ पेड़ की डाली का दातून कर स्नान करती हैं। व्रती महिलाएं भैंस के दूध की चाय पीती हैं। दोपहर के बाद घर के आंगन में मंदिर या गांव के चौपाल आदि में तालाब (सगरी) बनाकर पूजा-अर्चना करती है।
महिलाएं सगरी बनाकर पार में काशी के फूल को सजाएंगी। सामने एक पाटे पर गौरी-गणेश, कलश व हलषष्ठी देवी की पूजा करेंगी। साड़ी आदि सुहाग की सामग्री भी चढ़ाती है। हलषष्ठी माता की छह कहानी को कथा के रूप में श्रवण करती हैं। पूजन के बाद माताएं अपने संतान के पीठ पर हल्दी से भीगा पोता मारती हैं, जो माता के रक्षा कवच का प्रतीक है। इस व्रत-पूजन में छह की संख्या का अधिक महत्व है।
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व्रत की पौराणिक कथा यह है कि वासुदेव-देवकी के छह पुत्रों को कंस ने कारावास में मार डाला। सातवें बच्चे के जन्म का समय नजदीक आया तो देवर्षि नारद ने देवकी को हलषष्ठी देवी का व्रत रखने की सलाह दी। देवकी ने इस व्रत को सबसे पहले किया, जिसके प्रभाव से उनके आने वाले संतान की रक्षा हुई। हलषष्ठी का पर्व भगवान बलराम से संबंधित है।
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष का छठवां दिन, छह प्रकार की भाजी, छह प्रकार के खिलौने, छह प्रकार के अन्न वाला प्रसाद एवं छह कहानी की कथा का संयोग है। पूजन के बाद महिलाएं भोज्य पदार्थ में पसहर चावल का भात, छह प्रकार की भाजी, जिसमें मुनगा, कहू, सेमी, तरोई, करेला, मिर्च के साथ भैंस दूध, दही व घी, सेंधा नमक, महुआ के पत्ते का दोना आदि का उपयोग करती हैं।
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Published on:
13 Aug 2025 11:43 pm