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वेब जीआईएस 2.0 का कारनामा, 3 दिन में बदल गए जमीन के असली मालिक, सिस्टम डिजिटलाइजेशन बना मुसीबत

Web GIS 2.0 : डिजिटल गड़बड़ी से जमीन पर संकट। वेब जीआईएस 2.0 का ऐसा कारनामा सामने आया कि, रेकॉर्ड में सिर्फ 3 दिन के भीतर जमीन मालिक ही बदल गया। अब जमीन का असली मालिक भटकने मजबूर है।

Web GIS 2.0
वेब जीआईएस 2.0 का कारनामा (Photo Source)

Web GIS 2.0 : मध्य प्रदेश में जमीनों के डिजिटल सिस्टम सुधारने की कोशिश अब लोगों के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। जमीन रेकॉर्ड को सुधारने के नाम पर अपडेट किए गए वेब जीआईएस 2.0 सॉफ्टवेयर ने ऐसा कारनामा कर दिखाया है कि, असली मालिक की जमीन किसी और के नाम दर्ज हो गई। कमाल की बात ये है कि, ये सब सिर्फ तीन दिन में हो गया। यानी ये कि, तीन दिन पहले जो जमीन का असली मालिक था, अब सरकारी रिकॉर्ड में वो नहीं बल्कि उसके अलावा कोई और ही जमीन का मालिक है।

इसका हालिया उदाहरण देखने को मिला सूबे के अशोकनगर जिले के अंतर्गत आने वाली शाढ़ौरा तहसील के किर्रोदा गांव की जमीन के सर्वे क्रमांक 753, रकबा 0.501 हेक्टेयर पर पहले अरुणकुमार पुत्र बलराम और सुरेंद्र पुत्र कैलाश सिंह के नाम दर्ज थी। एक अगस्त की खसरा रिपोर्ट तक यही स्थिति थी। लेकिन, 4 अगस्त को जब इस जमीन की रजिस्ट्री के लिए दस्तावेज तैयार किए जा रहे थे तो सिस्टम ने ऐसा झटका दिया कि असली मालिकों के होश उड़ गए।

तीन दिन में पैरों तले जमीन खिसक गई

सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी से अब इस जमीन पर मालिक बन चुके हैं। बेटी पुत्री रघुनाथ अहिरवार और वैकुंठी पुत्री अन्ते अहिरवार। जबकि, इस नाम का कोई भी व्यक्ति या महिलाएं इस गांव में है ही नहीं। 3 दिन में ही रेकॉर्ड में जमीन मालिकों के नाम बदले मिले तो जमीन की रजिस्ट्री की प्रक्रिया तो वहीं रुक गई और असली जमीन मालिक अब रेकॉर्ड में अचानक हुई इस गड़बड़ी को सुधरवाने के लिए भटकने मजबूर हो गए।

तकनीकी सुधार या प्रशासनिक लापरवाही?

बीते जुलाई महीने में शासन ने जमीन रेकॉर्ड पोर्टल को छह-सात दिन तक बंद कर रखा और इसे वेब जीआईएस से वेब जीआईएस 2.0 में अपडेट किया गया। दावा किया गया कि इससे प्रक्रिया पारदर्शी और तेज होगी, लेकिन हकीकत में सिस्टम की तेजी ने जमीन का मालिक ही बदल डाला।

फिर वही हाल

एमपी में जमीनों के हस्तलिखित रेकॉर्ड को डिजिटल करने एनआईसी के सॉफ्टवेयर पर दर्ज कर ऑनलाइन किया गया था। साल 2018 में जमीन रेकॉर्ड को एनआईसी के सॉफ्टवेयर से हटाकर और पारदर्शी व सुरक्षित बनाने के लिए वेब जीआईएस सॉफ्टवेयर शुरू किया है। इससे साल बड़ी संख्या में जमीनों के रेकॉर्ड में गड़बड़ी हो गई थीं। कहीं पर किसान का नाम गायब हो गया था तो कहीं रकबा ही घट-बढ़ गया था और कहीं तो सरकारी जमीन पर ही लोगों के नाम दर्ज हो गए थे और अहस्तांतरणीय जमीन (जिनकी बिक्री नहीं हो सकती) उनसे अहस्तांतरणीय शब्द ही गायब हो गया था।

पुरानी गलतियां सुधरी नहीं कि नई गलतियां शुरु

साल 2018 में रेकॉर्ड में हुई ये गड़बड़ियां 7 साल बाद भी पूरी तरह से नहीं सुधर पाई थीं और अब वेब जीआईएस को वेब जीआईएस 2.0 में अपडेट करने में फिर जमीन रेकॉर्ड में नई गड़बड़ियां हो गईं।

अब जरूरत है जवाबदेही की

सिस्टम अपडेट के नाम पर आमजन की संपत्ति से खिलवाड़ न हो, इसके लिए शासन-प्रशासन को अब सिर्फ आश्वासन नहीं, ठोस कार्रवाई करनी होगी। जमीन मालिकों को भी चैक करना चाहिए कि उनकी जमीन का रेकॉर्ड ऑनलाइन सिस्टम में सुरक्षित दर्ज है या नहीं।

सुधार कराया जाएगा- तहसीलदार

मामले को लेकर शाढ़ौरा तहसीलदार ए.के गौतम का कहना है कि, जमीन रेकॉर्ड का सॉफ्टवेयर अपडेट हुआ है और अपडेशन की प्रक्रिया अभी जारी है। अब रेकॉर्ड वेब जीआईएस 2.0 पर शुरू हुआ है। इसी बदलाव के चलते ये गड़बड़ी हुई है। दिखवाकर सुधरवाया जाएगा।