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अलवर। बहरोड़ क्षेत्र के ग्रामीण गांवों में पहले महिलाएं सुबह-सुबह घरों के आसपास खाली जगहों और छतों पर पशुओं के गोबर से उपले तैयार करती थीं। यह उपले सालभर घरेलू ईंधन के रूप में उपयोग किए जाते थे। लेकिन अब समय के साथ परंपरा बदल गई है।
ग्रामीण महिलाएं अब गोबर से उपले बनाना बंद कर चुकी हैं। पहले यह कार्य उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण था, जिससे घर में ईंधन का उपयोग सुनिश्चित होता था। लेकिन अब गांवों में बिजली और गैस पहुंचने के कारण महिलाएं चूल्हों पर होने वाले कार्यों की जगह हीटर और गैस चूल्हे का उपयोग करने लगी हैं।
जहां महिलाएं गोबर के उपले बनाना छोड़ चुकी हैं, वहीं विभिन्न ऑनलाइन कंपनियां अब गाय और भैंस के गोबर से बने उपले अपने पोर्टल पर बेच रही हैं। इन उपलों की कीमत 3 दर्जन के पैक के लिए लगभग 250 से 300 रुपए तक है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण महिलाएं यदि गोबर से उपले बनाकर उन्हें ऑनलाइन बेचने का काम शुरू करें, तो हर माह लाखों रुपए कमा सकती हैं। इससे उन्हें घर में किसी के आगे आर्थिक मदद मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी और वह खुद को आत्मनिर्भर बना सकती हैं।
Published on:
03 Nov 2025 02:02 pm
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