अलवर.
सरिस्का बाघ अभयारण्य की पूरे विश्व में बाघों की वजह से पहचान है। इन बाघों को देखने के लिए लाखों की संख्या में पर्यटक हर साल सरिस्का पहुंच रहे हैं। मगर इसी अभयारण्य में बड़ी संख्या में बघेरे भी विचरण कर रहे हैं, लेकिन इन पर सरिस्का प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है।
यही वजह है कि आज तक न तो इन बघेरों पर कोई शोध किया गया है और न ही इनकी गणना, जबकि 2005 में जब अभयारण्य बाघविहीन हो गया था, तब इन्हीं बघेरों ने सरिस्का को संभाला था। आज हालत यह है कि बघेरे बेमौत मारे जा रहे हैं, लेकिन इनकी सुरक्षा को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया है।
सरिस्का का हार्ड क्लाइमेट है। सर्दियों में जंगल में तापमान 1 डिग्री और गर्मियों में 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। ऐसी विषम परिस्थितियों में रहने वाले जीवों की प्रतिरोधक क्षमता भी उसी हिसाब से बढ़ जाती है। यही वजह है कि यहां के बघेरे देश में सबसे मजबूत माने जाते हैं। दूसरे अभयारण्य में तापमान में इतना उतार-चढ़ाव नहीं होता।
लैपर्ड की आज तक सरिस्का प्रशासन ने गणना नहीं की है, लेकिन वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार इनकी संख्या 200 से 250 के बीच में है। अभयारण्य के कई क्षेत्रों में ये विचरण कर रहे हैं। खासकर गांवों के आसपास इनका विचरण ज्यादा रहता है।
शहर के नजदीक डहरा शाहपुर के अमृतवास में 21 जून की रात बिजली के तारों की चपेट में आने से एक मादा पैंथर और उसके दो शावकों की मौत हो गई। तीनों के शव पर जगह-जगह जलने के निशान मिले हैं। इससे पहले भी इसी क्षेत्र में तीन पैंथर की मौत हो चुकी है। हाइटेंशन लाइनों की वजह से आए दिन पैंथर व अन्य जंगली जानवरों की मौत हो रही है।
सरिस्का टाइगर कंजर्वेशन ऑर्गेनाइजेशन के सचिव चिन्मय मक मैसी ने बताया कि पैंथर के संरक्षण की दिशा में सरिस्का प्रशासन को काम करना होगा। हमारे यहां के पैंथर पूरे देश में सबसे ज्यादा मजबूत हैं। वन विभाग को पहले इनकी गणना करानी चाहिए। फिर इनके आहार-व्यवहार पर शोध होना चाहिए।
Published on:
16 Sept 2024 11:01 am