महावीर भट्ट
पुष्कर। पाकिस्तान के जासूर केन्टोनमेंट एरिया से 60 किलोमीटर आगे पाक सीमा के खुलना शहर में भारतीय फौज के सामने 1971 में पाकिस्तानी फौज ने घुटने टेक दिए। भारतीय फौज के सामने पाकिस्तानी सैनिकों ने एक-एक कर अपने अपने हथियार डाल दिए थे।
एक छोर पर बंदूक और असलाह का ढेर तो दूसरे छोर पर आत्मसमर्पण करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों की कतार। थोड़ी देर में पाकिस्तानी सैनिकों की कतार हजारों में तब्दील हो गई। आत्मसमर्पण के बाद पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सेना के ट्रकों में भारत लाया गया। यह नजारा हमारे लिए गर्व का था।
1971 में भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तानी फौज के आत्मसमर्पण के गवाह रहे पुष्कर के पाराशर कॉलोनी नित्यानंद आश्रम के सामने रामद्वारा निवासी 80 वर्षीय नाथूलाल शर्मा उस वक्त की घटना को बयां करते हुए आज भी गर्व से याद करते हैं। नाथूलाल पर हमले के लिए आगे बढ़ते सैनिकों को गोला-बारूद और अन्य विस्फोटक सामग्री की खेप पहुंचाने का जिम्मा था।
सेना में नायक पद पर रहे नाथूलाल बताते हैं कि 1971 के युद्ध में राजपूत रेजिमेन्ट, गोरखा यूनिट तथा 18 सिख प्लाटून के साथ गोला-बारूद लिए वर्तमान बांग्लादेश (तत्कालीन पाकिस्तान के बनगांव-चौकसा) होते हुए पाक सेना के केन्टोनमेन्ट एरिया जासूर पहुंचे थे। रात आठ बजे भारत-पाक युद्ध शुरू होने के समाचार मिलने के साथ ही दोनों देशों की सेनाओं में आमने-सामने की लड़ाई शुरू हो गई थी। आधुनिक हथियार नहीं थे इसलिए राइफल्स, बंदूक, तोप व गोला-बारूद के साथ लड़ाई लड़ी गई। दोनों ओर से हजारों सैनिक मारे गए। करीब चौदह दिनों तक दोनों सेनाओं के बीच हुए युद्ध में भारतीय सेना ने पाक सेना को चाराें ओर से घेर लिया था।
आखिरकार पाक सेना ने जासूर के पास समुद्र तट के पास एक स्थान पर आत्मसमर्पण कर दिया। सभी पाक सैनिकों को कतारबद्ध करके एक एक करके हथियार नीचे डलवाए गए तथा पाक सैनिकों को सेना वाहनों में भारत लाया गया। भारतीय सेना ने वर्तमान बांग्लादेश सीमा एवं पूर्व पाकिस्तान बॉर्डर पर तिरंगा फहराया था। नाथू लाल बताते हैं कि उस समय सेना के प्रत्येक कर्मचारी को ‘सैनिक’ मानते हुए हथियार दिए जाते थे। शर्मा ने भारत पाक के दोनों युद्धों का नजारा देखा था।
नाथू लाल बताते हैं कि भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी सेना की सफेद झंडे लगी एम्बुलेन्स में भारत-पाक बॉर्डर पर युद्ध की तैयारियों को देखने व सैनिकों की हौंसला अफजाई को आई थीं। युद्ध के दौरान शहीद सैनिकों का मौके पर ही कतारबद्ध कर अंतिम संस्कार कर दिया जाता था।
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नाथूलाल ने बताया कि उनकी डयूटी बद्रीनाथ धाम में थी। चाइना बॉर्डर के समीप लेंड स्लाइडिंग के कारण रास्ता अवरूद्ध हो गया थ। उस दौरान 24 घंटे तक पास के खेतों से आलू तोडकर लाए तथा डिब्बे में पकाकर आलू खाकर रातें गुजारनी पड़ी।
Published on:
11 May 2025 02:13 pm